भ्रष्टाचार बनाम काला धन

प्रो अजब सिंह आर्य –

काला धन भ्रष्टाचार की उपज है, अर्थात जब तक व्यक्ति भ्रष्ट आचरण करता रहेगा काला धन बनता रहेगा। इस क्रिया का नई या पुरानी मुद्रा से कोई संबंध नहीं है। मुद्रा परिवर्तन तो नासूर पर ड्रेसिंग करना मात्र है इलाज तो नासूर (भ्रष्टाचार) के आपरेशन से ही संभव है।

मुद्रा परिवर्तन से हमारे घर (देश) का आजतक का काला धन रूपी कबाड़ा तो साफ हो जाएगा किन्तु यह कबाड़ा तो रोजाना बनेगा। यह कल से घर में फिर इकट्ठा न हो, क्या इस मूल समस्या पर सरकार ने गहन विचार किया है, जिससे भ्रष्टाचार जड़से ही समाप्त हो सके ? यदि नहीं तो उचित होगा कि अगले मुद्रा परिवर्तन की तारीख आज ही निश्चित कर दी जाए।

मीडिया और सरकार जिस निम्न मध्यम आय वाली भीड़ को इस मुद्रा परिवर्तन के पक्ष में देखती या दिखाती है वह भ्रमवश या आशान्वित होकर समझ बैठी है कि अब उसके अच्छे दिन आगये हैं, अब उसके सारे काम बिना रिश्वत दिये हो जाएंगे। काश ऐसा हो जाता। लेकिन यह प्रायः असंभव दिखाई पड़ता है जबतक कि श्री मोदी जी कोई ओर महती निर्णय न ले, जिसकी इस समय संभावना दिखाई नहीं पड़ती।

भ्रष्टाचार निवारण , मुद्रा परिवर्तन की अपेक्षा, अधिक जटिल है । यह जनमानस की सोच से जुड़ा है । अच्छा होता, मुद्रा परिवर्तन के साथ, सरकार कुछ भ्रष्टाचार निरोधी गाईड़लाइंस भी दे देती, जिससे पंक्तियों में खड़े लोगों को पता लग जाता कि उनको अबसे रिश्वत लेनी और देनी बंद करनी पड़ेगी अन्यथा जनता की यह मेहनत पूरी सफल नहीं होगी।

भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए सर्वोत्तम तरीका है इलैक्ट्रॉनिक्स माध्यम द्वारा कैशलेस जिंदगी, जो भारत में दूर की बात है। दूसरा है किसी सशक्त संस्था द्वारा जनता के ऊपर कड़ी निगरानी और रोक लगाना।

सुना है, सिगांपुर के निर्माता ने अपने पहले संसदीय सदस्यों को इतना अधिक वेतन दिया था कि वह ईमानदारी से देश का निर्माण कर सकें और उन्होने ऐसा ही किया।

मेरा मोदी जी से निवेदन है कि पहले पुलिस विभाग को यथोचित वेतन, सम्मान और शक्ति देकर इस कदर ईमानदार, दृढ़ और सक्षम बनायें कि वह देश के प्रत्येक नागरिक को ईमानदारी के पथ पर चलने के लिए मजबूर कर सके। केवल तभी यह मुहिम सफल मानी जाएगी, अन्यथा इतिहास इस प्रक्रिया को (इसके राजनीतिक पक्ष को छोड़कर) पब्लिक का बहकावा व धन और समय की बर्बादी ही मानेगा।


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