टेन न्यूज़ पर पोस्ट कोविड को लेकर किया गया कार्यक्रम, डॉ रविंद्र ने बताए उपचार, पढ़ें पूरी खबर

Ten News Network

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नोएडा :– टेन न्यूज़ पर पोस्ट कोविड को लेकर कार्यक्रम का आयोजन किया है। इस कार्यक्रम का संचालन सुनील कुमार द्विवेदी द्वारा किया गया। आपको बता दे कि सुनील द्विवेदी टेन न्यूज़ नेटवर्क के सलाहकार है , खासबात यह है कि सुनील द्विवेदी कोरोना संक्रमित हो चुके है। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में एपीआरसी हेल्थ केयर प्राइवेट लिमिटेड के महानिदेशक डॉ रविन्द्र कुमार शामिल हुए।

 

डॉ रविंद्र ने पोस्ट कोविड को लेकर अपनी बात रखते हुए कहा की कोविड प्रोटोकॉल में रिहैबिलिटेशन का एक अहम रोल है। जिन लोगों को कोरोना हो रहा है, उनको काफी सारी परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। अब उनको वापस से उस स्टेज पर लाना, जैसे वह कोरोना से पहले थे, इसको रिहैबिलिटेशन कहते है।

 

उन्होंने बताया कि होपकिन्स इंस्टीट्यूट ने इसमें 5 लेयर का प्रोग्राम दिया है इसमें 5 लेयर को इन्होंने शरीर के 5 अलग – अलग चीज़ो में बांटा है, क्योंकि आप खाली फैफड़ों के ऊपर कंसन्ट्रेट नही कर सकते। सबसे मेजर पार्ट जो है वो फेफड़े है , लेकिन फेफड़ों के साथ हमारी पूरी बॉडी जुड़ी हुई है , तो इसलिए इसको 5 लेयर में डिवाइड किया गया है।

 

पहली लेयर में डीप बरीथिंग आता है इसमें हमारे फेफड़ों को प्रथम स्थान दिया गया है। दूसरा है वेस्टइंक्यूलर सिस्टम जो कि हमारे कान से लेकर ब्रेन तक बैलेंस करने का काम करता है। जिसके कारण हमें कई बार चक्कर भी आ जाते है। तीसरा है क्रॉस योर बॉडी पैटर्न, चौथा है बिल्ड स्ट्रेंथ और पांचवी है गेन एंड्यूरेन्स।

डॉक्टर रविंद्र ने कहा इसमें बेसिकली हमारे शरीर की सभी मसल का ध्यान रखा गया है, हमारे शरीर में दो तरह की मसल्स होती हैं एक वॉलंटरी मसल्स और दूसरी इंवॉलंटरी मसल्स। उन्होंने बताया कि वॉलंटरी मसल्स वो होती है जो हमारे कंट्रोल में है जैसे कि हमारा हाथ हम अपने हाथ को अपने अनुसार कही पर भी मूव कर सकते है। दूसरी जो इंवॉलंटरी मसल्स होती है यह हमारे कंट्रोल में नही होती है जैसे कि हमारे दिल की मसल्स हम चाह कर भी अपने दिल की धड़कन को खुद से नही रोक सकते।

 

डॉ रविंद्र ने रिहैबिलिटेशन के लिए लेयर के विषय पर बताते हुए कहा कि जो हमारी पहली लेयर है जिसको डीप बरीथिंग कहते है इसको पेशेंट को शुरुआती दौर में दिया जाता है। अगर कोई पेशेंट खड़ा नही हो पा रहा, खाली लेटा हुआ है तो उस केस में लेटकर की डीप बरीथिंग दें। डॉ ने बताया कि जो हमारी नार्मल बरीथिंग होती है वह 1 मिनट में 12 से 16 बार होती है। कोरोना के समय कई बार पेशेंट की बरीथिंग 4 से 5 गुना भी बढ़ जाती है जिसको देखना काफी डरावना लगता है। अब इसमें जो बरीथिंग रेट जो बढा हुआ है उसको नार्मल रेट पर लाना काफी चैलेन्ज का विषय होता है।

 

इनको नार्मल करने के शुरुआती दौर से शुरू करना होता है जब पेशेंट लेता हुआ होता है तो इसमें पेशेंट सांस लेगा और छोड़ेगा फिर सांस लेगा और होल्ड करेगा तो इस तरीके से यह प्रोसेस 5 सेकंड में पूरा होना चाहिए तभी पेशेंट का बरीथिंग लेवल नार्मल आ सकता है।

 

डॉ रविन्द्र ने वेस्टइंक्यूलर सिस्टम के बारे में बताते हुए कहा कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण सिस्टम है, क्योंकि यह हमारा बैलेंसिंग सिस्टम है और आज के समय में इसके मरीज ज्यादा देखने को मिल रहे है इस केस में मरीज को चक्कर, सर दर्द या वेस्टइंक्यूलर सिस्टम की वजह से कुछ मरीजों के अंदर दूर या पास से देखने की क्षमता कम हो रही है। तो उसके लिए वेस्टइंक्यूलर सिस्टम पर काम करना बहुत जरूरी है। इसमें हमें सबसे पहले हेड मूवमेंट को कंट्रोल करना होता है। जब कोई मरीज लेटा हुआ है तो उसको ज्यादा सर हिलाने से मना किया जाता है इसके शुरुआती केस में मरीज को अपनी आंखों को मूव करने के लिए कहा जाता है।

 

क्रॉस योर बॉडी पैटर्न के विषय पर बात करते हुए डॉ रविन्द्र ने कहा कि कोविड के बाद कई बार व्यक्ति बहुत ज्यादा पजलड रहता है उसको समझ नही आता है क्या हो रहा है उसमें व्यक्ति थोड़ा उलझन में रहता है। इसको खत्म करने के लिए क्रॉस योर बॉडी पैटर्न का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जितने भी क्रॉस मोमेंट्स होते है हमारी बॉडी के उन मोमेंट्स को मरीजों द्वारा कराया जाता है।

बिल्ड स्ट्रेंथ को लेकर डॉ रविन्द्र ने कहा कि इस केस में जो मरीज बेड पर लेता है है उसको आप एक्सरसाइज के लिए नही बोल सकते। तो शुरुआती दौर में आप पेशेंट को हाथ उठाकर जमाई लेने के लिए बोल सकते है। इसके साथ ही जब मरीज थोड़ा रिकवर होने लगता है तब उसके हाथ में छोटी पानी की बोतल देकर हाथ को मूव करने के लिए कहा जाता है।

 

गेन एंड्यूरेन्स के बारे में बताते हुए डॉ रविन्द्र ने कहा कि एंड्यूरेन्स के केस में कोरोना मरीजो को सबसे ज्यादा दिक्कत हार्ट अटैक की आ रही है। इसके कारण हमारी हार्ट की मसल्स भी ठीक तरह से मूव नही कर पा रहीं है , तो इसके लिए शुरुआती तौर पर लेटे हुए मरीज को केवल 5 मिनट के लिए हम नार्मल एक्सरसाइज करा सकते है जैसे कि हाथ मूवमेंट हो गया या डीप बरीथिंग जैसी एक्सरसाइज हम कर सकते है। जब मरीज नार्मल फेज में आ जाता है तब हम उसे 45 मिनट की वाकिंग या डीप बरीथिंग एक्सरसाइज के लिए बोल सकते है।

 

डॉ रविंद्र कुमार ने चेस्ट फिजियोथेरेपी के बारे में बताते हुए कहा कि यह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है यह काफी समय से चलता हुआ आ रहा है। उन्होंने बताया जो भी चेस्ट के पेशेंट होते हैं पेशेंट को निमोनिया या ऐसा कोई चीज होता है जिसने उन्हें आईसीयू में रहना पड़ता है उस केस में ज्यादातर चेस्ट थेरेपी कराना जरूरी होता है। चेस्ट मैं अगर किसी तरह की का कफ जाता है तो उसको चेस्ट थेरेपी के माध्यम से दूर किया जाता है। साथ की चेस्ट थेरेपी उस कफ को निकालने का काम करता है और यह चेस्ट थेरेपी का अहम रोल होता है।

डॉक्टर रविंद्र ने बताया जितने भी एक्टिव पेशेंट हैं उन सभी को चेस्ट फिजियोथैरेपी लेने के बाद व्यायाम करना बहुत ही आवश्यक है , क्योंकि बाकी जो भी शरीर की मसल्स है वह भी एक्टिव होना जरूरी है। जितना ज्यादा है बॉडी सेल्फ एक्टिव रहेंगी उतना ज्यादा वह शरीर की ऑक्सीजन की डिमांड को बढ़ाती रहेंगी। जिसके कारण लंग की कैपेसिटी को इससे बढ़ाने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा इसमें एक चीज जरूरी है अगर आप चेस्ट थेरेपी और व्यायाम एक साथ कर रहे हैं और आपको रोना से रिकवर हो चुके हैं तो आपको यह दोनों चीजें एक साथ सभी कर ली है जितना आपको लगे कि आप कर सकते हैं जबरदस्ती करने का प्रयास ना करें।

 

स्पैरोमीटर के विषय में जानकारी देते हुए डॉ रविंद्र ने बताया स्पैरोमीटर का इस्तेमाल अगर कोई लंग्स का मरीज करे तो ज्यादा बेहतर होगा। उन्होंने बताया स्पैरोमीटर दो प्रकार के होते है पहला जिसमे सिंगल बॉल होता है और दूसरा जिसमे तीन बॉल होते है। लेकिन दोनों का काम और मेजरमेंट सही होते हैं। उन्होंने बताया कि स्पैरोमीटर में एयर फिलिंग को दर्शाया जाता है। अगर कैपेसिटी कम है तो रेड बॉल ऊपर जाएगी अगर कैपेसिटी मीडियम है तो यह लोग और भी ऊपर जाएगी और अगर लंच के अच्छी कैपेसिटी है तो ग्रीन वॉल भी ऊपर जाएगी।

 

डॉ रविंद्र ने कहा की अगर कोई कोरोना का एक्टिव मरीज है जो होम आइसोलेशन है तो उसे स्पैरोमीटर का इस्तेमाल हर 2 घंटे में करना चाहिए। लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि एक टाइम में आप सिर्फ 10 बार ही स्पैरोमीटर के जरिये एक्सरसाइज करें। उन्होंने बताया कि जब हम स्पैरोमीटर को उल्टा करते है और उसके बाद हम इसमें सांस छोड़ते है तो इसमें सिर्फ दो बॉल्स हो ऊपर जाएंगी। बहुत कम मौके होतें है कि इस मामले में तीनों बॉल्स ऊपर जाएं। स्पैरोमीटर का इस्तेमाल करते समय हमें याद रखना है की हमे अपनी सांस को 10 बार अंदर की तरफ खींचना है और 10 बार बार की तरफ निकलना है।

 

डॉ रविंद्र ने बताया कि अगर हम अपनी फेफड़ों को क्लीन करना चाहते हैं तो उसके लिए गरम पानी काफी है अगर आप उसमें थोड़ा सा नींबू डाल देंगे तो उससे आपको विटामिन सी भी मिल जाएगा।

 

उन्होंने बताया कि कुछ लोग इसको लेकर भाप भी ज्यादा मात्रा में ले रहे है हमें इस चीज का ध्यान रखना है कि जब हम भाप ले रहे है तो हमें सांस को मुंह से लेना है और नाक से निकालना है और ऐसा हमे सिर्फ 10 बार करना है। साथ ही इस प्रकिया को हम दिन में 2 बार करें तो ज्यादा अच्छा होगा।

फेफड़ों को मजबूत करने के विषय पर बताते हुए डॉ रविंद्र ने कहा कि हमने देखा है की पूरी दुनिया में जितने भी स्पोर्ट्स पर्सन है उसमे से 6 या 7 ही ऐसे लोग है जिन्हें करोंना ने इफ़ेक्ट किया है। इससे हम समझ सकते है कि फिजिकल हेल्थ कितना ज्यादा मैटर करती है। अगर किसी स्पोर्ट्स पर्सन को कोरोना इफ़ेक्ट नही कर रहा उसके पीछे सिर्फ एक ही रीज़न है वो है वर्कआउट अगर हम वर्कआउट करते है उससे हमारी इम्युनिटी पावर तो अच्छी रहती ही है साथ ही इससे हमारे फेफड़े भी मजबूत रहते है।

 

 

उन्होंने कहा मेंटेनेस वर्कआउट हमें स्ट्रेंथ देते है मेंटेन करने के लिए, लेकिन अगर प्रेसर आ गया तो उस प्रेसर को नार्मल मेंटेनेन्स वर्कआउट नही झेल पाएगा। इसके साथ ही डॉ रविंद्र ने कई सारी एक्सरसाइज फेफड़ों को मजबूत करने के लिए बताई जो आप टेन न्यूज़ के यूट्यूब चैनल पर जाकर वीडियो में देख सकते है।

 

चेस्ट फिजियोथैरेपी के इंडिकेटर्स को लेकर जानकारी देते हुए डॉ रविंद्र ने कहा की इस केस में जो भी पेशेंट बेड पर है उनको बहुत ही जल्दी कफ बनना चालू हो जाता है। इक्वेशन जमा होने चालू हो जाते हैं चाहे खांसी हो या ना हो। तो बरीथिंग एक्सरसाइज तो नॉर्मल ही 4 से 5 दिन के बाद कर लेनी जरूरी होती है। और जैसे ही आप यह एक्सरसाइज करते हैं तो इससे एयर एंट्री बढ़ती है ऑक्सीजन सैचुरेशन बढ़ता है और उसके बाद फीलिंग भी बहुत बेटर हो जाती है।

चेस्ट फिजियोथैरेपी मैनुअली या मशीन के जरिय ज्यादा बेहतर है इसको लेकर डॉक्टर रविंद्र ने कहा कि आईसीयू में आमतौर पर होने वाली चेस्ट थेरेपी मैनुअली होती है इसका एक रीजन यह भी है कि इसकी जो मशीनरी होती है वह काफी एक्सपेंसिव होती है। जिसे हम कई मोडालिटी के द्वारा और बेहतर कर सकते हैं वाइब्रेशन के द्वारा होने वाली चेस्ट थेरेपी में फ्रीक्वेंसी मशीन का इस्तेमाल किया जाता है जिससे मैनुअली होने वाली थेरेपी में आने वाली 40 हर्ट की स्पीड को अपने हिसाब से एडजस्ट किया जा सकता है।

डॉ रविंद्र ने कोविड के बाद ठीक होने वाले मरीजों के ऑक्सीजन लेवल ना बढ़ पाने का कारण बताते हुए कहा कि यह परेशानी काफी ज्यादा मरीजों में देखी जा रही है। उन्होंने बताया कि जब मरीज 10 से 15 दिन बिस्तर पर लेटा रहता है तो उसकी फेफड़ों की मसल्स थक जाती हैं। तो उस केस में फेफड़ों को रेस्टिंग पोजीशन में लाना होता है जिसके लिए फेफड़ों की स्ट्रेंथ पोजीशन को धीरे-धीरे बढ़ाने का काम किया जाता है। जिसके लिए चेस्ट फिजियोथैरेपी में जो एक्सरसाइज हैं वह मरीजों द्वारा कराई जाती हैं।

 

ठीक हुए कोरोना मरीजों में थकान की स्थिति बहुत ज्यादा देखी जा रही है जिसको लेकर के डॉ रविंद्र ने बताया कि इसमें बहुत बड़ा हाथ पेशेंट की डाइट का भी है। इस मामले में ज्यादा से ज्यादा लिक्विड डाइट ली जाए और इस विषय पर सोचना छोड़ दिया जाए कि हमारा वजन बढ़ रहा है या मैं पहले से ही मोटा हूं खाऊंगा तो और मोटा हो जाऊंगा यह सब नहीं सोचना है और इसके लिए हमें सबसे ज्यादा प्रोटीन डाइट की जरूरत है। और अभी गर्मी का सीजन है तो इस समय काफी अच्छे-अच्छे फल भी दुकानों में अवेलेबल है जैसे कि तरबूज, खरबूज, लिची या फिर आम इन फलों का सेवन कर सकते हैं। डॉक्टर ने बताया कि अगर हम अपनी डाइट को दो भागों में डिवाइड करने एक तरफ रॉ फूड और दूसरी तरफ कुक फूड और उस डाइट में से हम फैट को कम कर दें तो इससे काफी हद तक रिकवरी मिलेगी और यह आगे के लिए भी बैटर रहेगा जब आप नॉर्मल हो जाएंगे।

 

लंग्स फाइब्रोसिस का फिजियोथैरेपी में इलाज के बारे में डॉक्टर रविंद्र ने बताया कि ब्रीथिंग एक्सरसाइज डे टुडे पेशेंट को कराया जाता है इसके साथ ही डिफरेंट डिफरेंट एक्सरसाइज जिसने हाथ पैरों का मूवमेंट पेशेंट से कराया जाता है। जो लंग्स पर जोर डालती है। इसके साथ-साथ कुछ मशीन है जिसकी मदद से फेफड़ों की एक्सरसाइज की जाती है। इसमें दोनों को मिक्स यूज किया जाता है जैसे कि कभी मशीन के थ्रू थे साइज कराई जाती है और कभी मैनुअल एक्सरसाइज कराई जाती है। उन्होंने बताया कि लंग्स फाइब्रोसिस थोड़ा ज्यादा समय ले जाती है इसमें 10 से 15 दिनों का भी समय लग सकता है। लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि हमारी बॉडी इसको भी रिकवर कर लेती है। और इस केस में अगर आप पेशेंट को थोड़ा मेंटल सपोर्ट भी देंगे तो इसमें पेशेंट के रिकवर होने के चांस और ज्यादा होते हैं।

 

डॉ रविंद्र ने बताया कि कोरोना से रिकवर हुए जो पेशेंट है चीन के साथ बैक पेन या सर दर्द जैसी समस्या आ रही है उसका कारण है उनकी मसल्स का थक जाना जिसके लिए हम कुछ एक्सरसाइज कर सकते हैं जिसके करने से यह दर्द कुछ दिनों में गायब हो जाएगा इसके साथ ही डॉ रविंद्र ने बताया कि पेन किलर अगर आप लेते हैं तो इसका असर सिर्फ कुछ देर के लिए रहेगा और जैसे ही पेन किलर का असर खत्म होगा वैसे ही आपको वह दर्द दोबारा होने लगेगा जिसके लिए आपको एक्सरसाइज करना ही पड़ेगा तभी आप इस दर्द से छुटकारा पा पाएंगे।

 

उन्होंने कहा कि एक्सरसाइज में आप दौड़ लगा सकते हैं अगर आप दौड़ नहीं सकते तो आप वॉक कर सकते हैं अगर आप वॉक भी नहीं कर सकते तो आप बैठकर एक्साइज कर सकते हैं। उन्होंने कहा जिस लेवल पर आप हैं बस उस लेवल से खुद को थोड़ा सा पुश करना है। इनके बाद सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा।

 

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